मेरी प्रिया # शॉर्ट स्टोरी चैलेंज # प्रेम
#शार्ट स्टोरी चैलेंज
जॉनर- प्रेम
कहानी - मेरी प्रिया
गगन एक मध्यम वर्गीय परिवार का लड़का था। पढ़ाई में बहुत ही होशियार था। इसलिए माता पिता को उससे बहुत सी उम्मीदें थीं।
"बेटा, आज तुम्हारे कॉलेज का पहला दिन है। एक बात हमेशा याद रखना कि तुमने इस इंजीनियरिंग कॉलेज तक पहुंचने के लिए बहुत मेहनत की है। अब इस मेहनत को बेकार मत होने देना। ध्यान केवल पढ़ाई पर ही लगाना।" गगन के पिता ने कहा।
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गगन कॉलेज में केवल पढ़ाई पर ही ध्यान देता था। उसका कोई फ्रैंड सर्किल नहीं था। वह सारा दिन या तो लेक्चर अटेंड करता था या कॉलेज लाइब्रेरी में बैठ कर नोट्स तैयार करता था। उसका ध्येय वहीं था जो अर्जुन का था- मछली की आंख।
एक दिन जब वह लाइब्रेरी में अपने लिए किताबें ढूंढ रहा था तब उसे एक लड़की ने पुकारा, "क्या आप मेरे लिए वो ऊपर रखी पुस्तक निकाल कर दे सकते हैं?"
गगन ने पलट कर देखा तो एक सांवले से रंग की, तीखे नैन नक्श वाली, पतली दुबली लड़की व्हील चेयर पर बैठी थी। गगन कुछ पल के लिए शून्य हो गया।
उस लड़की ने उसकी तंद्रा तोड़ते हुए कहा, "क्या आप…प्लीज़।"
"अरे! हाँ, हाँ, क्यों नहीं। कौन सी वाली?" गगन ने सहज होते हुए कहा।
"वी.पी गोयल की, फिजिक्स की।"
"वैसे यदि आप मेरी सलाह मानें तो इस किताब की जगह सोमवीर दत्त की किताब पढ़िए। सारे कॉन्सेप्ट बहुत अच्छे से समझा रखें हैं।" गगन ने राय देते हुए कहा।
उसने वह किताब उस लड़की को उतार कर दे दी।
"मेरा नाम गगन है….आपका?"
"जी, मेरा नाम प्रिया है। आप प्रथम वर्ष के छात्र हैं?"
"जी हां, आप …. अक्सर आती हैं यहां?"
"जी।" प्रिया ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। दोनों एक ही टेबल पर बैठ नोट्स बनाने लगे।
अब अक्सर गगन और प्रिया लाइब्रेरी में मिलते और साथ ही पढ़ाई करते। गगन प्रिया की पढ़ाई में मदद भी करता था। बातों बातों में दोनों को एक दूसरे के घर के वातावरण के बारे में पता चला। दोनों ही मध्यम वर्गीय परिवार से थे और दोनों के माता पिता को उन से बहुत उम्मीदें थीं। प्रिया की माँ को ग्लूकोमा था, काला मोतिया। जिससे उन्हें अब ना के बराबर ही दिखता था।
धीरे-धीरे दोनों एक दूसरे के करीब आने लगे। पर प्यार का एहसास शायद अभी नहीं हुआ था उन्हें। दोनों ने बहुत ही अच्छे अंकों से प्रथम वर्ष उत्तीर्ण किया था।
इस उपलक्ष्य में गगन प्रिया को बाहर खाने पर ले गया। आज उसने सोच रखा था कि वह प्रिया से अपने दिल की बात कह कर रहेगा।
खाना खाने के बाद जब गगन ने प्रिया को अपने दिल की बात कही तो वह हैरान रह गयी।
"गगन, शायद होश में नहीं हो। तुम इतने समझदार होकर ऐसी बातें कर रहे हो?"
"ऐसा …. क्या कह दिया मैंने प्रिया? क्या तुम…मुझे पसंद नहीं करती? या फिर किसी और को पसंद करती हो?"
"गगन? ये क्या कह रहे हो? मैं…. भला किसी और को…क्यों पसंद करुंगी?"
"तो फिर क्या बात है जो तुम्हें रोक रही है?" गगन ने पूछा।
"अपने आप को देखो और मुझे देखो। क्या कहीं से भी मैं तुम्हारे लायक लगती हूं? तुम इतने हैंडसम हो, सुशील हो, उज्जवल भविष्य है तुम्हारे सामने। और मैं? अपाहिज, बदसूरत। अंधकारमय भविष्य है मेरा। क्यों अपनी ज़िंदगी खराब करना चाहते हो तुम? मैं सिर्फ तुम पर एक बोझ बनकर रह जाऊंगी। जिसे उठाना तुम्हारे लिए नामुमकिन हो जाएगा।" प्रिया रोते हुए बोली।
"प्रिया, आज तक मैंने तुम्हारे दिव्यांग होने को तुम्हारे और हमारे बीच की दोस्ती में कभी आने नहीं दिया। बल्कि मुझे तो तुम पर गर्व है कि तुम उन अनगिनत लड़के लड़कियों से बहुत सक्षम हो जिनके पास सब है फिर भी वह अपने लिए रास्ते नहीं चुन पाते। और अंधकारमय भविष्य क्यों होगा तुम्हारा? तुम इतनी होनहार हो। इंजीनियरिंग पूरी होते ही नौकरियों की लाइन लग जाएगी। और रही बात कि मैं हैंडसम हूं, तुम सांवली हो, तो प्रिया, मेरी नज़रों से देखो अपने आपको। मेरी नज़रों में तुम दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की हो। तुम…सिर्फ मेरी हो। मेरी प्रिया।" गगन ने उसे अपने आगोश में लेते हुए कहा।
प्रिया गहरी सोच में डूब गयी। कुछ पल बाद सोच के सागर से बाहर निकल कर बोली, "गगन, अभी हमारे सामने तीन साल पड़े हैं। इन तीन सालों में हम दोनों दोस्त रहेंगे। और इंजीनियरिंग खत्म होने के बाद यदि तुम तब भी मुझे अपनाना चाहोगे, तो तुम्हारी प्रिया तुम्हारा इंतज़ार करती नज़र आएगी। किन्तु यदि इन तीन सालों में तुम्हें कोई और पसंद आ जाए या तुम अपना इरादा बदल दो तो मैं तुमसे कोई शिक़ायत नहीं करुंगी।"
गगन ने हामी भरते हुए कहा,"ठीक है, पर जो कुछ तुमने मेरे लिए कहा वही तुम पर भी लागू होता है।"
दोनों ने तीन साल बहुत मेहनत की। अक्सर लाइब्रेरी में मिलते और पढ़ाई करते। आखरी साल उनका मिलना जुलना कम हो गया। पढ़ाई का बहुत बोझ बढ़ गया था। प्रिया कभी - कभी लाइब्रेरी में नोट्स बनाते हुए गगन का इंतज़ार करती थी। पर गगन नही आता था। प्रिया ने अपने मन में इस बात को स्वीकार कर लिया था कि गगन उस दिन, जिस दिन उन दोनों ने हमेशा के लिए एक होना तय किया था, गगन उस दिन नहीं आएगा। प्रिया आहत ज़रुर थी, पर उसे पता था कि इसी में गगन की भलाई है।
आखिरकार वह दिन आ ही गया। गगन उसी रेस्टोरेंट में हाथों में फूलों का गुलदस्ता लिए प्रिया का इंतज़ार कर रहा था। घंटों प्रतीक्षा के बाद भी प्रिया नहीं आई। गगन की आंखों में आंसू थे। पर जैसा उन्होंने तय किया था, वह प्रिया से सवाल नहीं कर सकता था।
वह रेस्टोरेंट से निकल ही रहा था कि प्रिया की सखी रुपाली दिखी। गगन ने रुपाली से प्रिया के बारे में पूछा तो उसने बताया, "तुम्हें नहीं पता? प्रिया की माँ का कल देहांत हो गया।"
गगन ने और कुछ नहीं सुना और वह प्रिया के घर की तरफ बढ़ा। वहां पहुंचा तो देखा प्रिया फर्श पर बैठी रो रही थी। उसके सामने उसकी स्वर्गीय मां की तस्वीर रखी थी। गगन रोआंसा होकर बोला, "बस…इतना भी भरोसा नहीं था अपने दोस्त पर? खबर तक नहीं की?"
प्रिया ने उसकी तरफ देखा और फूट फूटकर रोने लगी। गगन ने फर्श पर बैठ उसे गले से लगाते हुए सांत्वना दी और फिर सहारा देकर उसे व्हील चेयर पर बैठाया।
"मुझे…लगा…तुम बदल …गये हो। अब नहीं आओगे।" प्रिया रोते हुए बोली।
"पगली….याद नहीं मैंने क्या कहा था? तुम…. सिर्फ मेरी हो…..मेरी प्रिया!!!!"
ये कह गगन और प्रिया एक दूसरे के आगोश में छिप गये।
🙏
आस्था सिंघल
Seema Priyadarshini sahay
23-May-2022 12:12 AM
बेहतरीन रचना
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Neelam josi
22-May-2022 06:43 PM
👏👌
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